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Thursday 4 August 2011

घाघ बाघ की मेमना-कथा

कनक तिवारी


प्रिय पाठकों,
इस बार का लेख आपसे संवाद करने के लिए है. यदि आपको कोई बताए कि अमुक जगह नरेन्द्र मोदी का धर्मनिरपेक्षता के समर्थन में व्याख्यान होने वाला है. या मुकेश अंबानी अपरिग्रह के समर्थन में प्रचार कर रहे हैं. अथवा बाबा रामदेव किसी ब्लेड कंपनी का ब्रांड अम्बेसडर बनने पर सहमत हो गए हैं. अथवा विजय माल्या को अखिल भारतीय मद्य निषेध अमल समिति का अध्यक्ष बना दिया गया है. तब आपको कैसा लगेगा? ठीक वैसा ही आपको तब क्यों नहीं लगता जब कुदरती मासूम चेहरे की आड़ में सबको राजनीतिक दांव में चित करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यह कहते हैं कि जन लोकपाल बिल तो संसद के अधिकार में है. देश में किसी को हक नहीं है कि वह संसद के मुकाबले अपनी राय को तरजीह दे.

संसद आखिर है क्या? देश के कोई 542 लोकसभा सदस्यों को संविधान की मंशा के अनुसार हर पांच साल में गठित किया जाने का प्रावधान है. ऐसा संविधान के प्रक्रिया वाले हिस्से में लिखा है. संविधान के प्रारंभ में ही लेकिन यह लिखा है कि हम भारत के लोग अपना यह संविधान खुद को आत्मार्पित करते हैं.

विश्व में भारत का संविधान इस अर्थ में अद्भुत है कि उसे आज़ादी मिलने के पहले से ही भारतीय देशभक्तों ने मिलकर बनाना शुरू कर दिया था. उसे आज़ादी मिलने के बाद 26 नवम्बर 1949 को पूरा किया गया. फिर उसे 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया. संविधान यह कहीं नहीं कहता कि जनता एक बार जनप्रतिनिधि को चुनकर संसद में पहुंचा दे तो फिर उसे पांच वर्ष तक मुंह पर पट्टी बांधकर रखना होगा.

कांग्रेस के एक बड़बोले प्रवक्ता मनीष तिवारी देश की जनता को गैर निर्वाचित तानाशाह कहते हैं जिसे सांसदों को नियंत्रित करने का अधिकार नहीं है. कांग्रेस के मशहूर वकील प्रवक्ता अभिषेकमनु सिंघवी भी कहते हैं कि विधायन की प्रक्रिया से नागर समाज का कोई लेना देना नहीं है. वह संसद की सार्वभौमिकता का सवाल है. उनसे भी ज़्यादा मशहूर वकील और काबीना के सबसे तेज़ तर्रार मंत्री कपिल सिब्बल का चेहरा फलसफाई अंदाज़ में मुस्कराहट और व्यंग्य का कॉकटेल पीते हुए ताना कसता है कि जनता के कहे पर संसद को ही हुक्मनामा चस्पा करने का अधिकार है.

जन आंदोलनों के प्रहार से बचने के लिए मौजूदा केन्द्र सरकार ने कानून मंत्री बदलकर एक और बेहतर वकील सलाम खुर्शीद को मंत्रालय का भार सौंप दिया है. उनके अतिरिक्त अपने ज़माने के बड़े वकील पी. चिदंबरम गृह मंत्रालय की नाजुक जिम्मेदारी संभाल ही रहे हैं. कुछ और वकीलों को सांसदों में गिन लिया जाए तो डॉ. मनमोहन सिंह का नया कुनबा सरकार बनाम जनता के युद्ध में कानून दां वकील सेनापतियों के भरोसे है.

यदि कोई कहे कि फिल्मों में अश्लीलता का सवाल फिल्म निर्माताओं के संघ को सौंप दिया जाना चाहिए. खिलाड़ियों में नशीली दवा लेने का मामला अंतर्राष्ट्रीय ड्रग माफिया को सलाह के लिए सौंप देना चाहिए. आदिवासियों और किसानों की जबरिया जमीनें उद्योगपतियों द्वारा छीने जाने का विवाद उद्योगपतियों के संगठन फिक्की के हवाले कर देना चाहिए. जिला कलेक्टर के आदेश पर गोली चलाने के आदेश की वैधता की जांच ए. डी. एम. या एस. डी. एम. से करानी चाहिए. या देश की कोयला नीति को बनाने का अधिकार कोयला माफिया को ही सौंप देना चाहिए. तो आपको कैसा लगेगा?

यदि देश की जनता की आकांक्षा का जन लोकपाल बिल संसद के हवाले कर देने का मासूम तर्क जनता नहीं समझेगी तो संसद की भूमिका को लेकर महात्मा गांधी ने जो टिप्पणियां की हैं, वे इतिहास के आले से मिटा दी जाएंगी. संसद का अर्थ उसकी सर्वसम्मति से यदि हो तो प्रधानमंत्री के तर्क से सभवतः पूरी असहमति नहीं हो सकती. तब भी जनता को संसद के विवेकाधिकार पर सवाल पूछने का हक तो होगा. ऐसा अधिकार देश के संविधान न्यायालयों को तो है ही. लेकिन यदि संसद का अर्थ सांसदों के बहुमत से है तो संसद की सार्वभौमिकता, प्रामाणिकता और वैधता की तुरही बजाते रहने से क्या होगा?

सरकारी कुनबा यह जानता है कि चाहे कुछ हो जाए वह अपने बहुमत के बल पर संसद में जैसा चाहे वैसा अधिनियम पास करा लेगा. इसका ही तो विरोध अन्ना हजारे के नेतृत्व में पूरा देश कर रहा है. घरों में शादियां बहुमत के आधार पर तय नहीं होतीं. किस कब्रिस्तान में मरहूम को सुपुर्देखाक किया जाए इसके लिए जम्हूरियत में बहुमत के कानून लागू नहीं होते. बच्चे का नामकरण संस्कार बहुमत के आधार पर नहीं होता. कौन सा मंदिर किस इलाके में बनवाया जाए इसका फैसला भी बहुमत नहीं करता. कौरवों ने द्रौपदी का चीर हरण या पांडवों ने द्वूत क्रीड़ा में पराजय का कृत्य बहुमत के आधार पर नहीं किया था. समाज में एक तरह की सर्वानुमति होती है. वह संसद में दिखाई दे तो जनता उसे स्वीकार कर सकती है.  
 
जिस संसद में देश की परमाणु नीति बहुमत के कथित आधार पर अमरीका के सामने घुटने टेक देती है. बहुमत के आधार पर हुकूमत चलाने वाली सरकार हर तीन माह में महंगाई कम करने का झूठ बोलती है. हर चार माह में पेट्रोल, डीज़ल और रसोई गैस की कीमतें बढ़ा देती है. वह उद्योगपतियों से कदम ताल करती हुई किसानों और गरीबों की आय का जरिया तक छीन लेती है. जो बस्तर के मासूम आदिवासी बच्चों के हाथों में इसलिए बंदूकें पकड़ा देती है ताकि वे अपने ही स्वजनों की छाती छलनी कर सकें. उस देश की सरकारें अर्थात काबीना के मंत्री और उनके ढिंढोरची इस देश के इतिहास के गले में यह तर्क ठूंस रहे हैं कि संसद का सार्वभौमिक अधिकार जनता की पीठ पर पड़ता हुआ वह कोड़ा है, जिसे फटकारने से मध्ययुग के सामंतों या अरब देशों के सुल्तानों का आतंक जनता को महसूस करना चाहिए.

गांधी ने कहा था अंगरेज़ी पद्धति की संसद एक वेश्या है. इसलिए उसे भारत में नहीं लाया जाना चाहिए. बड़ी मुश्किल से यह शब्द उन्होंने संभवतः एनी बेसेंट के कहने से हटा दिया था. लेकिन इसके बावजूद उस मसीहा में संसद के गठन और काम को लेकर वह कसैलापन बाकी था जो पूरे जीवन गांधी को इस घबराहट से दो चार करता रहा कि भारत का क्या संसदीय भविष्य होगा.

यह गांधी ने ही कहा था कि संसद एक नर्तकी है जो प्रधानमंत्री के इशारे पर नाचती है. उसे प्रधानमंत्री के बहुमत के कारण जिस तरह चाहे इस्तेमाल किया जा सकता है. यह भी गांधी ने कहा है कि अधिकांश सांसद अपनी राय तो व्यक्त ही नहीं कर पाते. वे एक तरह के सत्तानशीन अनुशासन में बंधे होते हैं और उनका काम सरकारी विधेयकों के पक्ष में केवल हाथ उठाने तक सीमित होता है.

अपनी महान पुस्तक ‘हिन्द स्वराज‘ में गांधी का यह कथन जन लोकपाल विधेयक बनाने की पृष्ठभूमि में देश को पढ़ना और सोचना चाहिए-‘पार्लियामेन्ट को मैंने वेश्या कहा, वह भी ठीक है. उनका कोई मालिक नहीं है. उनका कोई एक मालिक नहीं हो सकता. लेकिन मेरे कहने का मतलब इतना ही नहीं है. जब कोई उसका मालिक बनता है-जैसे प्रधानमंत्री-तब भी उसकी चाल एक सरीखी नहीं रहती. जैसे बुरे हाल वेश्या के होते हैं, वैसे ही सदा पार्लियामेन्ट के होते हैं. प्रधानमंत्री को पार्लियामेन्ट की थोड़ी ही परवाह रहती है. वह तो अपनी सत्ता के मद में मस्त रहता है. अपना दल कैसे जीते इसी की लगन उसे रहती है. पार्लियामेन्ट सही काम कैसे करे, इसका वह बहुत कम विचार करता है. अपने दल को बलवान बनाने के लिए प्रधानमंत्री पार्लियामेन्ट से कैसे कैसे काम करवाता है, इसकी मिसालें जितनी चाहिये उतनी मिल सकती हैं. यह सब सोचने लायक है.‘

लोक धर्म से लोकमत उपजता है. लोकमत लोकसभा का गठन करता है. लोकसभा को लोकनीति लागू करने का संवैधानिक आदेश होता है. इसमें कहीं भी सरकार जैसा कोई शब्द नहीं होता. लोकसभा में बहुमत का अंकगणित होता है. अंकगणित से समाजशास्त्र का कोई रिश्ता नहीं होता. जनता विचार का विश्वविद्यालय है. समाज कुलपति है. सांसद लोक विश्वविद्यालय के छात्र होते हैं. उन्हें लोक विश्वविद्यालय से डिग्रियां मिल सकती हैं. डिग्रियों के आधार पर मंत्री बनने की नौकरियां मिल सकती हैं. लेकिन ये डिग्रियां छीनी भी जा सकती हैं. सांसद लोक विश्वविद्यालय से रेस्टिकेट भी किए जा सकते हैं.

सांसदों की इकाई के समूह को संसद कहा जाता है. संसद का अर्थ सदन या घर से भी होता है. घर में बुजुर्गों की नीति, मां का मातृत्व, पिता की कमाई और बच्चों की किलकारियां भी होती हैं. देश के कुछ चुनिंदा वकील मंत्रियों और सांसदों का चोला ओढ़कर अपने ज्ञान की शेखी उस भारतीय जनता के सामने बघार रहे हैं जिस जनता ने उन्हें पैदा किया है.

एक बहुत प्रतिभाशाली वकील और खानदानी राजनीतिज्ञ सिद्धार्थ शंकर राय पर यह आरोप लगता है कि उन्होंने इंदिरा गांधी को गुमराह कर देश में आपातकाल लगवा दिया. एक नए मंत्री सिद्धार्थ बाबू का ताजा संस्करण बन रहे हैं. इंदिरा गांधी तो खानदानी राजनीतिज्ञ थीं और बहुत साहसी भी. उन्होंने अमरीका की अनदेखी करते हुए अपने दमखम पर बांग्लादेश बनवा दिया.

मनमोहन सिंह को इंदिरा गांधी का साहसी उत्तराधिकारी मानने की भूल इतिहास कभी नहीं करेगा. वे जन लोकपाल विधेयक से भले बाहर हों अमरीका की गिरफ्त से नहीं हैं. उन्हें मासूम समझने का भ्रम जिन्हें है, उन्हें राजनीति का ककहरा फिर से पढ़ना चाहिए. जनता को वह नीति कथा याद होगी जब एक मेमना शेर का इसलिए शिकार हो गया था कि उसने विनम्र प्रतिवाद किया था कि वह तो उस निचली जगह से पानी पी रहा है, जहां नाले के ऊपरी हिस्से से पानी वह बाघ पी रहा है.

RAVIWAR.COM - http://raviwar.com/news/575_clever-lion-and-manmohan-singh-kanak-tiwari.shtml

Tuesday 2 August 2011

जन लोकपाल विधेयक Part 1

(प्रस्तुत दस्तावेज़ श्री शान्ति भूषण, जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण एवं अरविन्द केजरीवाल द्वारा तैयार जनलोकपाल बिल के  वर्ज़न-2.2 का हिन्दी अनुवाद है. किसी भी आशय के स्पष्टीकरण के लिए मूल अंगे्रज़ी मसविदा ही देखें.)


इस विधेयक का मसविदा केन्द्र में लोकपाल नामक संस्था की स्थापना के लिए तैयार किया गया है. लेकिन इस विधेयक के प्रावधान इस तरह के होंगे ताकि प्रत्येक राज्य में इसी तरह की लोकायुक्त संस्था स्थापित की जा सके. 
 
जन लोकपाल विधेयक


एक अधिनियम, जो केन्द्र में ऐसी प्रभावशाली भ्रष्टाचाररोधी और शिकायत निवारण प्रणाली तैयार करेगा, ताकि भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक प्रभावी तन्त्र तैयार हो सके और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को प्रभावी सुरक्षा मुहैया कराई जा सके.   
1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ- 



(1)   इस अधिनियम को जन लोकपाल अधिनियम, 2010 कहा जा सकता है.

(2)   अपने अधिनियमन के 120वें दिन यह प्रभावी हो जाएगा. 


2. परिभाषाएं- इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,- 
(1)   `कार्रवाई´ का अर्थ है किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा अपने कर्र्तव्य के निर्वहन के लिए की गई कोई कार्रवाई और जिसमें निर्णय, संस्तुति या निष्कर्ष अथवा अन्य किसी प्रकार की कार्रवाई सम्मिलित है, इसमें जानबूझकर विफलता, चूक या इसी तरह की अभिव्यक्ति करने वाली कार्रवाई भी शामिल होगी
(2)   `आरोप´ में किसी लोकसेवक के सम्बन्ध में निम्नलिखित में, से किसी भी बात की पुष्टि शामिल है- 
क.     वह सरकारी कर्मचारी है और कदाचार में लिप्त है 
ख.     भ्रष्टाचार में लिप्त है.
(3)   `परिवाद´ में सम्मिलित है, कोई शिकायत या आरोप अथवा भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले व्यक्ति द्वारा सुरक्षा एवं उचित कार्रवाई के लिए किया गया अनुरोध. 
(4)   `भ्रष्टाचार´ के अन्तर्गत वे सभी कृत्य सम्मिलित है, जो भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 9 अथवा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के तहत दण्डनीय तय किए गए हैं.
साथ ही यदि किसी व्यक्ति ने किसी कानून या नियम का उल्लंघन करते हुए सरकार से कोई लाभ लिया हो, वह व्यक्ति और उसके साथ ही वे लोक सेवक जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लाभ लेने में उस व्यक्ति की सहायता की हो, भ्रष्टाचार में लिप्त माने जाएंगे. 
(5)   `सरकार´ अथवा `केन्द्र सरकार´ से आशय है 'भारत सरकार'.
(6)   शासकीय कर्मचारी´ से आशय है कोई व्यक्ति, जिसकी नियुक्ति किसी भी समय लोक सेवा अथवा केन्द्र सरकार या उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय से सम्बन्धित किसी पद के लिए, प्रतिनियुक्ति अथवा स्थायी, अस्थायी या अनुबन्ध के आधार पर हुई है या हुई थी, लेकिन इसमें न्यायाधीश शामिल नहीं होंगे.
(7)   `शिकायत´ का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा यह दावा कि उसे सिटीजन्स चार्टर के अनुसार और उस विभाग के जन शिकायत अधिकारी से सम्पर्क के बाद भी सन्तोषजनक समाधान नहीं मिल पाया.
(8)   `लोकपाल´ से आशय है -
क.     इस अधिनियम के अधीन एवं इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अन्तर्गत निर्धारित कार्य  के पालन हेतु गठित पीठें, अथवा 
ख.     इस अधिनियम के अन्तर्गत, या इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अन्तर्गत बनाये गये विभिन्न नियमों, विनियमों या आदेशों के अन्तर्गत नियत, तरीके और सीमा में, अपनी शक्तियों का उपयोग करने वाला और अपने कर्तव्यों एवं जिम्मेदारियों का निर्वहन करने वाला कोई अधिकारी या कर्मचारी
ग.      अन्य सभी प्रयोजनों के लिए, संस्था के तौर पर संयुक्त रूप से कार्यरत अध्यक्ष एवं सदस्य;
(9)   `अल्प दण्ड´ और `प्रमुख दण्ड´ से आशय वही होगा जो केन्द्रीय लोक सेवा आचरण नियमों में परिभाषित है. 
(10) `कदाचार´ का अर्थ है वही होगा जैसा कि केन्द्रीय लोक सेवा (आचरण) नियम में परिभाषित है और जिसमें सतर्कता का दृष्टिकोण हो
(11) `लोक प्राधिकरण´ में सम्मिलित है कोई प्राधिकरण अथवा निकाय अथवा स्वशासी संस्था जिसकी स्थापना या गठन-
क.     संविधान द्वारा अथवा संविधान के अन्तर्गत हुआ हो
ख.     संसद द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून द्वारा हुआ हो;
ग.      सरकार द्वारा जारी अधिसूचना अथवा आदेश, और सरकारी स्वामित्व, नियन्त्रित अथवा पर्याप्त अंश से वित्तपोषित संस्था 
(12) `लोक सेवक´ का अर्थ है, वह व्यक्ति जो किसी भी समय था अथवा है,- 
क.     प्रधानमन्त्री;
ख.     मन्त्री;
ग.      संसद सदस्य;
घ.      उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश;
ङ.      सरकारी कर्मचारी;
च.      अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष (यथा नाम) अथवा स्थानीय प्राधिकरण का कोई सदस्य, जो कि केन्द्रीय सरकार के नियन्त्रण में हो अथवा एक सांविधिक निकाय अथवा निगम जिसका गठन भारतीय संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अन्तर्गत हुआ हो, जिसमें सहकारी समिति भी सम्मिलित है, अथवा ऐसी सरकारी कम्पनी, जो कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 617 के अन्तर्गत अर्थ रखती हो, और सरकार द्वारा स्थापित कोई भी सांविधिक अथवा गैर सांविधिक समिति अथवा परिषद के सदस्य
छ.     इसमें वे सभी सम्मिलित हैं, जो भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 की धारा 2 (सी) में `लोकसेवक´ घोषित हैं.
ज.     ऐसे अन्य प्राधिकारी, जो केन्द्र सरकार की अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर उल्लिखित किए जाएं
(13) `सतर्कता दृष्टिकोण´ में सम्मिलित है-
क.     भ्रष्टाचार की सभी गतिविधियां
ख.     घोर लापरवाही अथवा जानबूझकर की गई लापरवाही, निर्णय लेने में कोताही, प्रणालियों और प्रकियाओं का घोर उल्लंघन, ऐसे मामलों में स्वविवेक अधिकार का अतिरेक जहां कोई प्रकट/सार्वजनिक हित स्पष्ट नहीं है, नियन्त्रणकर्ता अथवा वरिष्ठ अधिकारी को समय पर सूचित करने में चूक
ग.      अपने अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा कर्तव्यों की उपेक्षा अथवा कार्यालय के दुरुपयोग की शिकायत मिलने पर भी कार्रवाई में असफलता/विलम्ब, यदि कानून के अन्तर्गत किसी अधिकारी का ऐसा दायित्व बनता है तो
घ.      प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी के आचरण के माध्यम से भेदभाव में संलिप्तता. 
ङ.      भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वालों का उत्पीड़न
च.      मामले के निस्तारण में किसी तरह का असंगत/अनुचित विलम्ब, सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद, मामले में सतर्कता दृष्टिकोण की उपस्थिति निष्कर्ष को और सुदृढ़ता प्रदान करेगी. 
छ.     किसी से अनुचित पूछताछ या जांच, भ्रष्टाचार के दोषी को अनावश्यक मदद पहुंचाने अथवा निर्दोष को फंसाने के लिए.
ज.     लोकपाल द्वारा समय-समय पर अधिसूचित कोई अन्य विषय सामग्री
(14) `भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाला´ व्यक्ति वह है, जो किसी खतरे का सामना करता है -
क.     पेशेगत नुकसान, जिसमें गैरकानूनी स्थानान्तरण, प्रोन्नति से इंकार, उपयुक्त अनुलाभ से इंकार, विभागीय कार्यवाही, भेदभाव सम्मिलित है पर सीमित नहीं अथवा 
ख.     शारीरिक क्षति अथवा 
ग.      वास्तव में इस तरह की क्षति
जो कि या तो इस अधिनियम के अन्तर्गत लोकपाल से शिकायत करने, अथवा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अन्तर्गत याचिका दाखिल करने के कारण से सम्बन्धित है अथवा भ्रष्टाचार अथवा कुशासन को उजागर करने अथवा रोकने के उद्देश्य से की गई कोई अन्य विधिक कार्रवाई.
3. लोकपाल संस्था की स्थापना और लोकपाल की नियुक्ति: 
(1)   लोकपाल नामक एक संस्था होगी, जिसमें अपने अधिकारियों और कर्मचारियों के सहित एक अध्यक्ष और दस सदस्य होंगे. 
(2)   लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चुनाव उसी तरह होगा, जैसा कि इस अधिनियम में बताया गया है.
(3)   लोकपाल के अध्यक्ष अथवा सदस्य के तौर पर नियुक्त व्यक्ति को, अपना कार्यभार सम्भालने से पूर्व, निर्धारित प्रारूप में राष्ट्रपति के समक्ष शपथ अथवा प्रतिज्ञान लेना होगा.
(4)   इस अधिनियम के लागू होने के छ: माह के अन्दर सरकार पहले पहले लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति सरकार करेगी, और सभी प्रचालन तन्त्र एवं परिसम्पत्तियों के साथ संस्था का गठन हो जाएगा. 
(5)   सरकार -
क.     सेवानिवृत्ति, सदस्य अथवा अध्यक्ष की सेवानिवृत्ति के तीन माह पूर्व, अथवा
ख.     किसी अन्य अनपेक्षित कारण से इस तरह की रिक्ति उत्पन्न होने के एक माह के भीतर. लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति करेगी
4. लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यगण कुछ विशेष कार्यालयों से सबन्द्ध नहीं रहेंगे-लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यगण संसद या किसी राज्य की विधायिका के मौजूदा सदस्य नहीं होंगे या किसी पद या लाभ के न्यास में (अध्यक्ष या सदस्य के पद के अलावा) नहीं रहेंगे या किसी अन्य व्यवसाय या पेशे में नहीं होंगे, अपना कार्यभार सम्भालने से पूर्व, लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य चुना गया व्यक्ति -
(1)   यदि वह किसी न्यास अथवा लाभ के पद पर है, उस पद से त्यागपत्र दे देगा, या
(2)   यदि वह कोई व्यवसाय कर रहा है, उस व्यवसाय के कार्य व्यवहार अथवा प्रबन्धन से अपना सम्बन्ध समाप्त कर लेगा; या
(3)   यदि वह किसी पेशे में है तो उस पेशे को स्थगित करना होगा
(4)   यदि वह प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से किसी अन्य गतिविधि से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से लोकपाल में उसके दायित्वों के प्रदर्शन में हितों का टकराव सम्भव है, उसे उस गतिविधि से अपना जुड़ाव खत्म कर देना होगा. 
उपबन्ध किया गया है कि यदि उस काम के छोड़ देने के बाद भी, उस गतिविधि से जिससे वह पूर्व में जुड़ा था, से लोकपाल में उसके प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है, वह व्यक्ति लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य नियुक्त नहीं किया जा सकेगा.

5. लोकपाल का कार्यकाल एवं अन्य सेवा शर्तें- 
(1)   लोकपाल के अध्यक्ष अथवा सदस्य के रूप में नियुक्त व्यक्ति का कार्यकाल कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से पांच साल या 70 वर्ष की उम्र, जो भी पहले हो, होगा. 
आगे यह भी उपबन्ध है कि
क.     लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य, राष्ट्रपति को सम्बोधित हस्तलिखित पत्र के जरिए पद त्याग सकता है
ख.     अध्यक्ष अथवा सदस्य को इस अधिनियम में निहित तरीके से पद से हटाया जा सकता है. 
(2)   अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य को प्रति माह क्रमश: भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन मिलेगा.
(3)   अध्यक्ष अथवा सदस्य के लिए देय भत्ते व पेंशन और अन्य सेवा शर्तें वहीं होंगी, जैसा निर्धारित किया जाए. 
परन्तु अध्यक्ष अथवा सदस्य को देय भत्ते व पेंशन और अन्य सेवा शर्तें उसकी नियुक्ति के बाद उसके लिए बदली नहीं जाएंगी.
(4)   लोकपाल कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, जिसमें देय वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, अथवा उस कार्यालय में कार्य कर रहे व्यक्तियों के सम्बन्ध में, भारत की संचित निधि पर भारित होगा. 
(5)   `लोकपाल निधि´ के नाम से एक अलग निधि होगी, जिसमें लोकपाल द्वारा लगाए गए दण्ड/जुर्माने जमा होंगे और जिसमें इस अधिनियम की धारा 19 के अन्तर्गत वसूले गए सार्वजनिक धन के नुकसान का 10 फीसदी भी सरकार द्वारा जमा किया जाएगा. इस निधि का निस्तारण पूरी तरह लोकपाल के विवेक पर होगा और इस निधि का प्रयोग लोकपाल को बढ़ाने/उन्नयन/बुनियादी सुविधाओं के विस्तार के लिए ही किया जाएगा. 
(6)   लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यगण भारत सरकार या किसी राज्य सरकार अथवा ऐसे किसी निकाय, जो सरकार द्वारा वित्तपोषित हो, में किसी भी पद पर नियुक्ति या संसद, राज्यों की विधायिका अथवा स्थानीय निकायों का चुनाव लड़ने के पात्र नहीं होंगे, यदि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे देने के बाद अध्यक्ष अथवा सदस्य के तौर पर किसी भी अवधि के लिए कोई पद ग्रहण किया है. किसी सदस्य को अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है, बशर्ते सदस्य और अध्यक्ष के तौर पर उसका कार्यकाल पांच वर्ष से अधिक न हो और कोई भी सदस्य अथवा अध्यक्ष पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद पुनर्नियुक्ति  या सेवा विस्तार का पात्र नहीं होगा. 

6. अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति
(1)   अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति एक चयन समिति की संस्तुति पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी.
(2)   निम्नलिखित लोग लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्य बनने के पात्र नहीं होंगे:
क.     कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है. 
ख.     कोई व्यक्ति जिसे भारतीय दण्ड संहिता, अपराध संहिता अथवा किसी अन्य अधिनियम के तहत आरोपित किया गया हो अथवा सीसीएस आचरण नियमों के तहत दण्डित किया गया हो.
ग.      कोई व्यक्ति जिसकी उम्र 40 वर्ष से कम हो.
घ.      कोई व्यक्ति जो किसी भी सरकार की सेवा में था और पिछले दो वर्षों के भीतर कार्यालय छोड़ दिया था, या तो त्यागपत्र अथवा सेवानिवृत्ति के माध्यम से. 
(3)   लोकपाल के कम से कम चार सदस्य विधिक पृष्ठभूमि के होंगे. अध्यक्ष सहित दो से अधिक सदस्य पूर्व नौकरशाह नहीं होंगे.
स्पष्टीकरण: कानूनी पृष्ठभूमिका तात्पर्य है कि वह व्यक्ति भारत में कम से कम दस सालों तक न्यायिक सेवा में पद सम्भाल चुका हो अथवा उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में कम से कम 15 साल तक अधिवक्ता रहा हो.
(4)   सदस्यों और अध्यक्ष की निष्ठा असन्दिग्ध हो और पूर्व में उन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने के संकल्प का प्रदर्शन किया हो.
(5)   चयन समिति में निम्नलिखित लोग होंगे
क.     भारत के प्रधानमन्त्री
ख.     लोकसभा में नेता विपक्ष
ग.      उच्चतम न्यायालय के सबसे कम उम्र के दो न्यायाधीश
घ.      उच्च न्यायालयों के सबसे कम उम्र के दो न्यायाधीश
ङ.      भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक
च.      मुख्य निर्वाचन आयुक्त
छ.     प्रथम चयन प्रक्रिया के बाद से लोकपाल के अध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त होने वाले सदस्य
(6)   प्रधानमन्त्री चयन समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा.
(7)   चयन समिति के विचारार्थ योग्य उम्मीदवारों की सूची तैयार करने हेतु एक खोज कमेटी होगी, जिसमें दस सदस्य होंगे
(8)   खोज समिति के सदस्यों का चयन निम्नलिखित तरीके से होगा
क.     चयन समिति भारत के पूर्व नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षकों और भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्तों में से खोज समिति के पांच सदस्यों का चयन करेगी.
             परन्तु निम्नलिखित लोग खोज समिति के सदस्य बनने के पात्र नहीं होंगे:
(i) कोई व्यक्ति जिसके विरुद्ध विधिवत (सारभूत) भ्रष्टाचार का आरोप लग चुका हो.
(ii) कोई व्यक्ति जो सेवानिवृत्ति के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो गया हो अथवा किसी राजनीतिक दल से उसका गहरा जुड़ाव रहा हो. 
(iii) कोई व्यक्ति जो किसी भी रूप में सरकार की सेवा कर रहा हो.
(iv) कोई व्यक्ति जो सेवानिवृत्ति के बाद भी सरकारी कार्य कर रहा हो, उन कार्यों  को छोड़कर जो कि उस पद के लिए आरक्षित हैं, जिससे वह सेवानिवृत्त हुआ हो. 
ख.     चयनित उपरोक्त पांच सदस्य, नागरिक समाज से पांच सदस्यों को मनोनीत करेंगे.
(9)   खोज समिति ऐसे वर्ग के लोगों अथवा ऐसे व्यक्तियों से संस्तुति अमन्त्रित करेगी, जिन्हें वह इसके लिए उचित समझती हो. इस संस्तुति में अन्य विषयों के साथ-साथ अधोलिखित विवरण होने अनिवार्य हैं.
क.     जिस प्रत्याशी की संस्तुति की गई है, उसका व्यक्तिगत विवरण.  
ख.     प्रत्याशी ने अतीत में अगर किसी कानूनी आरोप या नैतिक भ्रष्टाचार के आरोप का सामना किया है तो उसका पूरा विवरण.
ग.      भ्रष्टाचार के खिलाफ अतीत में उसके द्वारा किए गए प्रयासों का लिखित प्रमाण.
घ.      अतीत का ऐसा विवरण जो यह दर्शाता हो कि वह अपने विवेक से निर्णय करता है और किसी भी तरह उसे प्रभावित नहीं किया जा सकता, यदि कोई हो तो.
ङ.      कोई अन्य सामग्री, जिसका निर्णय खोज समिति करे.
(10)  चयन के लिए अधोलिखित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाएगा -
क.     प्रत्याशियों की सूची उनके समूचे विवरण के साथ, जो उन्होंने उपरोक्त प्रारूप में दिया हो, उसे वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाएगा. 
ख.     इन नामों पर जनता की प्रतिक्रिया मांगी जाएगी. 
ग.      खोज समिति इन प्रत्याशियों की पृष्ठभूमि और पहले किए गए कार्यों से सम्बन्धित सूचनाएं जुटाने के लिए कोई भी माध्यम इस्तेमाल कर सकती है.
घ.      प्रत्याशियों के बारे में एकत्रित सभी सामग्री खोज समिति के हर सदस्य को अग्रिम तौर पर उपलब्ध कराई जाएगी. समिति के सदस्य हर प्रत्याशी का अपनी ओर से आंकलन करेंगे. 
ङ.      समिति मिलकर हरेक उम्मीदवार के बारे में प्राप्त सामग्रियों पर चर्चा करेगी. चयन मुख्यत: सर्वसम्मति के आधार पर किया जाएगा.
परन्तु जांच समिति के तीन या अधिक सदस्य अगर लिखित कारणों के आधार पर किसी सदस्य के चयन पर आपत्ति करते हैं तो उसका चयन नहीं किया जाएगा.
च.      खोज समिति कुल रिक्तियों की तीन गुना संख्या के बराबर नामों की सूची बनाकर चयन समिति के विराचार्थ प्रस्तुत करेगी
छ.     चयन समिति, रिक्तियों की संख्या के बराबर संख्या में प्रत्याशियों का चयन कर प्रधानमन्त्री को देगी. चयन मुख्यत: सर्वसम्मति के आधार पर किया जाएगा. 
परन्तु अगर चयन समिति के तीन या अधिक सदस्य किसी सदस्य के चयन का विरोध लिखित रूप में देते हैं, तो उस व्यक्ति का चयन नहीं होगा. 
ज.     खोज समिति की सभी बैठकें और सभी चयन की वीडियो रिकॉर्डिंग होगी और इसे सार्वजनिक किया जाएगा. 
(11)  चयन समिति द्वारा तय किए गए नामों की अनुशंसा प्रधानमन्त्री तत्काल राष्ट्रपति से करेंगे, जो इस अनुशंसा प्राप्ति के एक महीने के भीतर नियुक्ति का आदेश जारी करेंगे.
(12)  अगर चयन समिति का कोई सदस्य चयन प्रक्रिया के जारी रहने के दौरान ही सेवानिवृत हो जाता है तो उस स्थिति में वह सदस्य चयन समिति में तब तक बना रहेगा, जब तक कि चयन प्रक्रिया पूरी न हो जाए.
7. अध्यक्ष अथवा सदस्यों को हटाना -
(1)   अध्यक्ष या किसी सदस्य को केवल राष्ट्रपति के आदेश से तभी उसके पद से हटाया जा सकता है जबकि निम्न में से कोई एक या अधिक आधार हो - 
क.     कदाचार प्रमाणित होने पर
ख.     पेशागत, मानसिक या शारीरिक अक्षमता
ग.      दिवालिया
घ.      नैतिक भ्रष्टाचार से सम्बद्ध आरोप लगने पर
ङ.      पद पर रहते हुए किसी दूसरे वैतनिक कार्यों में लिप्त पाए जाने पर
च.      ऐसे आर्थिक लाभ या अन्य लाभ हासिल करने पर जो उस व्यक्ति के सदस्य या अध्यक्ष के रूप में कार्य को प्रभावित कर सकता है.
छ.     अपने पास विचाराधीन मामले में, किसी का पक्ष लेने के उद्देश्य से अथवा किसी को फंसाने के उद्देश्य से, बाहरी प्रभाव द्वारा निर्देशित/संचालित होने पर 
ज.     किसी सरकारी अधिकारी को अनुचित रूप से प्रभावित करने या प्रभावित करने का प्रयास करने पर.
झ.     ऐसी कोई चूक या ऐसा कोई कार्य करने पर, जो भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत दण्डनीय है, या किसी कदाचार में लिप्त पाए जाने पर.
ञ.      यदि कोई सदस्य या अध्यक्ष किसी भी तरीके से, भारत  सरकार अथवा किसी प्रदेश सरकार द्वारा या उसके किसी अधिकारी या उसके प्रतिनिधि द्वारा स्थापित अनुबन्ध या समझौते में रुचि रखता हो या उससे सम्बद्ध हो, या उससे होने वाले लाभों से अथवा उससे होने वाली किसी तरह की आय से सदस्य के अलावा किसी और तरह से सम्बन्ध रखता हो, या किसी निगमित कम्पनी से सम्बद्ध हो, उसे कदाचार का दोषी समझा जाएगा.  
(2)   लोकपाल के किसी सदस्य या अध्यक्ष को निष्कासित करने के लिए अधोलिखित प्रक्रिया का अनुसरण करना होगा.
क.       कोई भी व्यक्ति लोकपाल के एक या अधिक सदस्यों या अध्यक्ष के खिलाफ ठोस सबूत पेश करते हुए उसके निष्कासन की याचिका पेश कर सकता है.
ख.      ऐसी याचिका प्राप्त होने पर सुप्रीम कोर्ट इसकी सुनवाई करेगा और अधोलिखित में से एक या एक से अधिक कदम उठा सकता है:
(i)                  सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल को जांच का आदेश, यदि प्रथम दृष्टया इसकी आवश्यकता महसूस होती है और अगर सम्बन्धित पक्षों द्वारा दायर हलफनामों से इसका निर्णय करना सम्भव न हो सके. विशेष जांच दल तीन महीने के अन्दर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा.
(ii)                        विशेष जांच दल द्वारा उपबन्ध (1) के तहत जांच लम्बित होने पर, उस सदस्य से आंशिक अथवा पूरा काम वापस ले लेने का आदेश देना
(iii)               कोई मामला न बनने की स्थिति में याचिका रद्द करना
(iv)              आधारों की पुष्टि होने पर, सम्बन्धित सदस्य अथवा अध्यक्ष को हटाने की अनुशंसा राष्ट्रपति के पास भेजना
(v)                        यदि प्रथमदृष्टया भ्रष्टाचार निरोधी कानून या किसी अन्य कानून के तहत किसी दण्डनीय अपराध का मामला बनता हो तो समुचित एजेंसी को केस दर्ज करने और जांच का निर्देश देना 
ग.      सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम न्यायधीशों के पैनल की पीठ बनेगी. परन्तु अगर इन न्यायाधीशों में से कोई भी कभी चयन समिति का सदस्य रहा हो या जिसके खिलाफ कोई मामला लोकपाल के समक्ष लम्बित हो, वह उस पीठ का सदस्य नहीं हो सकेगा.
घ.      सुप्रीम कोर्ट ऐसी याचिकाओं को इस आधार पर ख़ारिज नहीं कर सकता कि उसके खिलाफ पहले से ऐसा ही मामला विचाराधीन है.
ङ.      अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि याचिका नुकसान पहुंचाने की मंशा या बुरी नीयत से दायर की गई है तो अदालत शिकायतकर्ता पर जुर्माना लगा सकती है या उसे एक साल तक कैद की सजा सुना सकती है. 
सुप्रीम कोर्ट से उपयुर्क्त उपबन्ध (ख)(iv) में अनुशंसा मिलने की स्थिति में प्रधानमन्त्री, सदस्य या सदस्यों अथवा लोकपाल के अध्यक्ष को तत्काल हटाए जाने की अनुशंसा राष्ट्रपति से करनी होगी जो उस सदस्य या सदस्यों अथवा अध्यक्ष को अनुंशसा प्राप्त होने के एक महीने के भीतर हटाने का आदेश जारी करेंगे.


लोकपाल की शक्तियां एवं कार्य


8. लोकपाल के कार्य: 

(1)   लोकपाल ऐसी शिकायतों की प्राप्तियों के लिए उत्तरदायी होगा जिनमें-

क.     जिसमें भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अधीन चूक के आरोप हों या दण्डनीय कृत्य के आरोप लगाए गए हों,

ख.     जहां सरकारी सेवक पर दुर्व्यवहार के आरोप हों

ग.      शिकायत 

घ.      भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों से मिली शिकायतें,
ङ.      लोकपाल के कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतें
(1क) अपने कर्मचारियों की अखण्डता सुनिश्चित करना, चाहे वह स्थाई हों अथवा अन्य, लोकपाल का मुख्य कर्र्तव्य होगा. लोकपाल इसे यह सुनिश्चित करने के लिए पूर्णत सक्षम एवं सशक्त होगा. 
(2)   लोकपाल, जांच एवं पूछताछ के बाद, जैसा वह उचित समझे, निम्नलिखित कार्यों में से एक या एकाधिक कार्रवाई कर सकता है:
क.     अगर प्रथम दृष्टया शिकायत नहीं बनती है तो मामला बन्द करना, अथवा 
ख.     सरकारी कर्मचारी और साथ ही साथ उस व्यक्ति, जो इस कृत्य में पक्षकार है, के खिलाफ आरोप- पत्र दाखिल करना
ग.      अगर सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अधीन अन्तत: दोषी पाया जाता है तो सुसंगत आचार संहिता के तहत उस पर युक्तियुक्त दण्ड आरोपित करने की अनुशंसा करना और उस सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी की भी सुनिश्चित सिफारिश करना
घ.      जांच के अधीन विषयगत यदि किसी लाइसेंस या पट्टा या स्वीकृति या ठेका या समझौते को रद्द करने अथवा संशोधित करने का आदेश दे सकता है
ङ.      अगर भ्रष्टाचार के कृत्य में सम्बन्धित प्रतिष्ठान या कम्पनी या ठेकेदार या किसी अन्य को शामिल पाया जाता है तो उसे प्रतिबन्धित सूची में डालने का आदेश देना
च.      इस अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक, समुचित अधिकारियों को शिकायतों के निवारण के लिए उपयुक्त दिशा निर्देश जारी करना 
छ.     अगर लोकपाल के आदेश का विधिवत अनुपालन नहीं होता है, तो उन आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए इस अधिनियम के तहत आदेश जारी करना
ज.     इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अनुसार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जरूरी कार्रवाई करना 
(3)   अगर किसी भी मामले में लोकपाल को किसी स्रोत से जानकारी हो है, तो वह इस अधिनियम के अन्तर्गत, अगर इस तरह का कोई मामला उपबन्ध (1) की धारा (क), (ख), (ग) या (घ) में उल्लेखित है, स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई कर सकता है.
(4)   समय-समय पर जरूरत पड़ने पर समुचित अधिकारी को उनके कामकाज, प्रशासन एवं अन्य व्यवस्था में परिवर्तन के लिए दिशा-निर्देश जारी कर सकता है, ताकि भ्रष्टाचार, दुर्व्यवहार, जन शिकायत एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की प्रताड़ना की गुंजाइश और सम्भावना कम हो सके
(5)   इस धारा की उपधारा (2) (ग) के अन्तर्गत लोकपाल द्वारा जारी किए गए आदेश सरकार के लिए बाध्यकारी होंगे और आदेश मिलने के एक सप्ताह के अन्दर उसका कार्यान्वयन जरूरी होगा. 
(6)   भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 19 को समाप्त कर दिया जाएगा. इस अधिनियम के कार्यान्वयन में दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापना अधिनियम की धारा 6-क लागू नहीं होगी.
(7)   इस अधिनियम की किसी भी कार्यवाही में अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 लागू नहीं होगी. किसी भी कानून के तहत लोकपाल से एक बार स्वीकृति मिल जाने के बाद, ऐसी सभी स्वीकृतियां, जो आरम्भिक जांच के लिए जरूरी हैं, प्रदत्त मानी जाएंगी.
9. सर्च वारण्ट जारी होना आदि-
(1)    जहां लोकपाल, अपने पास उपलब्ध सूचना के आधार पर
क.     अगर यह यकीन करने का कोई कारण देखता है, कि कोई व्यक्ति-
(i)      जिसे इस अधिनियम के अन्तर्गत सम्मन या नोटिस जारी किया गया है या जारी किया जा सकता है, जो किसी जांच के लिए ज़रूरी या उपयोगी कोई सम्पत्ति दस्तावेज या अन्य कोई वस्तु प्रस्तुत नहीं करेगा, या नहीं कर पाएगा, या प्रस्तुत नहीं करने की वजह होगा
(ii)       जिसके कब्जे में मुद्रा, स्वर्ण, आभूषण या दूसरी मूल्यवान चीजें या वस्तुएं हैं और ऐसी मुद्रा, स्वर्ण, आभूषण या दूसरी मूल्यवान चीजें हैं जिनकी घोषणा, सम्पत्ति की घोशणा करने सम्बन्धी किसी भी प्रभावी कानून के अन्तर्गत सक्षम प्राधिकार के समक्ष,  अंशत: या पूर्णत: नहीं की गई है 
. विचार करता हो कि उसके द्वारा आरम्भ की गई किसी भी जांच या अन्य कार्रवाई का उद्देश्य, सामान्य खोज या निरीक्षण द्वारा पूरा होगा,
सर्च वारण्ट के ज़रिए किसी ऐसे पुलिस अधिकारी को, जिसका ओहदा पुलिस इंस्पेक्टर से नीचे नहीं होगा, तलाशी लेने, निरीक्षण करने के लिए तदानुसार अधिकृत करेगा, और ऐसा करने के लिए वह अधिकारी- 
(i)         किसी भी इमारत या स्थान, जहां उसे ऐसी किसी सम्पत्ति, दस्तावेज, रकम, स्वर्ण, आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तु के रखे जाने के सन्देह का कारण हो, वह प्रवेश कर सकेगा और तलाशी ले सकेगा.
(ii)       किसी ऐसे व्यक्ति की तलाशी ले सकेगा जिस पर कि स्वयं को छिपाने या किसी वस्तु को छिपाने का सन्देह हो. 
(iii)      वह उप नियम-(i) के अन्तर्गत प्राप्त शक्तियों के तहत ऐसा कोई भी दरवाजा, बक्सा, लॉकर, सेफ, आलमारी या अन्य पात्र धारक का ताला तोड़ सकेगा जिसकी चाबी उपलब्ध नहीं है. 
(iv)     ऐसी तलाशी में प्राप्त किसी सम्पत्ति, दस्तावेज, रकम, स्वर्ण, आभूषण या अन्य कीमती चीजों जब्त करे 
(v)       किसी भी सम्पत्ति या दस्तावेज पर पहचान के चिन्ह बनाए ताकि कोई उसे निकाल न सके अथवा उसकी नकल न कर सकें.
(vi)     ऐसी किसी भी सम्पत्ति, दस्तावेज, पैसे, स्वर्ण, आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तुओं या चीजों को सूचीबद्ध कर दर्ज किया जाएगा.
(2)   उपधारा (1) के तहत तलाशी एवं जब्ती में, यथासम्भव, अपराध प्रक्रिया संहिता, 1973 के सम्बन्धित प्रावधान लागू होंगे
(3)   उपधारा (1) के अधीन सभी उद्देश्यों के लिए जारी सभी वारण्ट, अपराध प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 93 के अधीन अदालत द्वारा जारी वारण्ट समझा जाएगा. 
10. साक्ष्य-
(1)   इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत किसी भी जांच के उद्देश्य से, (अगर कोई प्रारम्भिक जांच है, सहित) लोकपाल किसी भी सरकारी कर्मचारी या कोई अन्य व्यक्ति, जो उनकी राय में किसी जांच के लिए प्रासंगिक सूचना उपलब्ध कराने या दस्तावेज देने में सक्षम है, सूचना देने अथवा दस्तावेज़ प्रस्तुत कराने के लिए तलब कर सकेगा.
(2)   लोकपाल को नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के अन्तर्गत कोई याचिका दायर करते हुए, निम्नलिखित मामलों में, ऐसी किसी भी जांच के उद्देश्य से (आरम्भिक जांच सहित) वे सारी शक्तियां प्राप्त होंगी जो नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के अन्तर्गत किसी प्रकार का निपटारा करते हुए दीवानी न्यायालय को प्राप्त हैं - 
क.     किसी भी व्यक्ति को उपस्थित रहने के लिए बाध्य करने और उसे सम्मन जारी करने और उससे शपथ लेना;
ख.     किसी भी दस्तावेज की खोज एवं उसे प्रस्तुत करना
ग.      हलफनामे पर साक्ष्य प्राप्त करना;
घ.      किसी न्यायालय या कार्यालय से कोई सार्वजनिक रिकार्ड या उसकी प्रतिलिपि हासिल करना
ङ.      दस्तावेज या गवाह की जांच के के लिए आदेश जारी करना;
च.      गलत या अफसोसनाक दावा या रक्षा के आलोक में क्षतिपूर्ति भुगतान का आदेश;         
छ.     देरी के लिए हर्जाने का आदेश 
ज.     ऐसे अन्य मामले, जिन्हें निर्धारित किया जा सकता है
(3)   लोकपाल के सम्मुख कोई भी कार्रवाई भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193 के अर्थ में एक न्यायिक कार्रवाई समझी जाएगी.
11. लोकपाल की रिपोर्ट इत्यादि-
(1)   लोकपाल के अध्यक्ष, प्रतिवर्ष, राष्ट्रपति को अपने कार्य निष्पादन पर, निर्धारित प्रारूप में प्रतिवेदन पेश करेंगे. 
(2)   राष्ट्रपति, प्रतिवेदन की प्रति, व्याख्यात्मक ज्ञापन देते हुए संसद के दोनों सदनों में रखवाएंगे.
(3)   लोकपाल हरेक महीने अपनी वेबसाइट पर ऐसे मामलों की एक सूची, संक्षिप्त विवरण, परिणाम एवं कृत अथवा प्रस्तावित कार्रवाई के विवरण के साथ प्रकाशित करेगा, इस वेबसाइट पर पिछले एक महीने में लोकपाल द्वारा प्राप्त मामलों की सूची, निपटाए गए, और लम्बित पड़े मामलों की सूची भी भी प्रकाशित की जाएगी.
12. लोकपाल एक मान्य पुलिस अधिकारी होगा
(1)   अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 36 के उद्देश्य के लिए, लोकपाल के अध्यक्ष, सदस्य और इसकी जांच शाखा के अधिकारियों को पुलिस अधिकारी माना जाएगा.
(2)   भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत किसी अपराध की छानबीन करते हुए वे उस मामले में किसी दूसरे कानून के अन्तर्गत किसी अपराध की जांच के लिए भी सक्षम होंगे.
  
13. आदेशों की अवज्ञा में लोकपाल की शक्ति-
(1)   लोकपाल के प्रत्येक आदेश में उन अधिकारियों का नाम पूरी तरह स्पष्ट किया जाएगा, जो उसे अमल में लाएंगे, आदेश के अमल में लाने की प्रक्रिया और उसके अनुपालन की समय सीमा का विवरण भी स्पष्ट दिया जाएगा. 
(2)   अगर लोकपाल के आदेश का क्रियान्वयन निर्धारित प्रक्रिया और समय सीमा के भीतर नहीं होता है तो लोकपाल अवमानना के दोषी अधिकारियों पर जुर्माना लगाने का निर्णय ले सकता है.
(3)   सम्बन्धित विभाग के आरेखण और संवितरण अधिकारी को, उपधारा (2) के तहत जारी आदेश में उल्लेखित, जुर्माना अधिकारियों के वेतन में से काटने का निर्देश दिया जाएगा. 
परन्तु जिन अधिकारियों पर जुर्माना लगेगा, उन्हें सुनवाई का एक मौका दिए बिना उनका वेतन नहीं कटेगा. यह भी कि अगर आरेखण और संवितरण अधिकारी इन अधिकारियों का वेतन काटने में असमर्थ होता है तो वह स्वंय ही इस दण्ड के लिए उत्तरदायी होगा.
(4)   अपने आदेश की अनुपालना कराने के लिए, लोकपाल के पास वे सभी अधिकार क्षेत्र, शक्तियां एवं अधिकार  होंगे जोकि उच्च न्यायालय के पास हैं, और लोकपाल अपनी अवमानना के सम्बन्ध में इनका प्रयोग कर सकेगा, और इस उद्देश्य के लिए न्यायालय की अवमानना अधिनियम १९७१ (1971 का केन्द्रीय अधिनियम 70) को संशोधित करते उच्च न्यायालय के लिए निहित सन्दर्भ में लोकपाल की अवमानना को भी शामिल किया जाता है. 
13क. भ्रष्टाचार अधिनियम की निवारण धारा 4 के तहत विशेष न्यायाधीश 
(1)   वार्षिक आधार पर, लोकपाल विशेष भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम 1988 की धारा 4 के तहत हर क्षेत्र में न्यायाधीशों की संख्या का आंकलन करेगा और सिफारिश के तीन महीने के भीतर ही सरकार उतनी ही संख्या में न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगी. 
परन्तु यह भी कि लोकपाल विशेष न्यायाधीशों की उतनी ही संख्या की सिफारिश करेगा जितनी कि इस अधिनियम के तहत प्रत्येक मामले का निपटारा एक वर्ष के भीतर होने के लिए आवश्यक होंगी.
(2)    कोई नई नियुक्ति करने से पहले, सरकार, उम्मीदवारों की निष्ठा सुनिश्चित करने हेतु, चयन प्रक्रिया पर लोकपाल से परामर्श करेगी. सरकार उन सिफारिशों को लागू भी करेगी. 
13ख. अनुरोध पत्र जारी करना: लोकपाल की खण्डपीठ को लोकपाल में लम्बित किसी मामले में अनुरोध पत्र (एक न्यायाधीश को दूसरे न्यायाधीश द्वारा जारी किए जाना वाला) जारी करने का अधिकार होगा. 
13ग. भारतीय तार अधिनियम के तहत अधिकार: लोकपाल की खण्डपीठ, भारतीय तार अधिनियम की धारा 5 के तहत पदनामित प्राधिकरण मान्य होगी. इस पीठ को टेलीफोन, इण्टरनेट अथवा भारतीय तार अधिनियम तथा, सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 तथा भारतीय तार अधिनियम 1885 के तहत जारी नियमावली के सहित, दायरे में आने वाले अन्य माध्यम इत्यादि पर संचरित सन्देशों, आकड़ों और आवाजों पर निगरानी रखने या उन्हें रोककर सुनने का अधिकार होगा. 

लोकपाल की कार्यप्रणाली
14. लोकपाल की कार्यप्रणाली:
(1)   अध्यक्ष लोकपाल की संस्था के समग्र प्रशासन और पर्यवेक्षण के लिए उत्तरदायी होगा.


(2)   नीति-नियम निर्धारण सहित लोकपाल के कामकाज के लिए आन्तरिक प्रणाली विकसित करने, लोकपाल में विभिन्न अधिकारियों को कार्य देने, लोकपाल में विभिन्न पदाधिकारियों को अधिकार देने जैसे कार्य लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यों द्वारा एक संस्था के तौर पर सामूहिक रूप से किए जाएंगे.
(3)   लोकपाल के अध्यक्ष की प्रधानमन्त्री के साथ वित्त और कर्मचारियों की जरूरत के आकलन के लिए वार्षिक बैठक होगी. इस बैठक में हुए निर्धारण के आधार पर सरकार द्वारा लोकपाल को संसाधन प्रदान कराए जाएंगे.
(3क) निर्धारित व्यय भारत के समेकित निधि से दिया जाएगा.
(3ख) लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य अपने कर्मचारियों की अखण्डता और सभी तरह की पूछताछ और जांच की अखण्डता सुनिश्चित करने के लिए हर सम्भव कदम उठाएंगे. इस उद्देश्य के लिए वे अयोग्य अथवा भ्रष्ट कर्मियों को त्वरित सज़ा देने हेतु नियम बनाने, काम का मानदण्ड निर्धारित करने, प्रक्रिया निर्धारित करने अथवा अन्य कोई कदम उठाने के लिए सक्षम होंगे. 
(3ग) लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य अधिनियम द्वारा सुनिश्चित समय सीमा का कड़ाई से पालन कराने के लिए ज़िम्मेदार होंगे और समुचित कदम उठाने के लिए सक्षम होगें.
(3घ) लोकपाल पूरी तरह से प्रशासनिक, वित्तीय और कार्यात्मक सहित सभी मामलों में सरकार के हस्तक्षेप से स्वतन्त्र होगा. 
(4)   लोकपाल तीन या अधिक सदस्यों की पीठ में कार्य करेगा. इस पीठ का गठन क्रमिक तरीके से होगा और उन्हें मामले कम्प्यूटर के द्वारा क्रमिक तरीके से सौंपे जाएंगे. प्रत्येक पीठ में कम से कम एक सदस्य विधिक पृष्ठभूमि वाला होगा. 
(5)   इन पीठों का दायित्व होगा : 
क.     कुछ विशिष्ट श्रेणी के मामलों में अभियोजन आरम्भ करने की अनुमति देना
ख.     अपने कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत सुनना
ग.      लोकपाल के अधिकारियों द्वारा जांच अथवा सतर्कता के बन्द कर दिए मामले या लोकपाल द्वारा समय-समय पर निर्धारित की गई श्रेणी के, मामलों में अपील 
घ.      ऐसे अन्य आदेशों के लिए, जिनका निर्णय समय-समय पर लोकपाल द्वारा लिया जा सकता है.
परन्तु लोकपाल कि पूरी पीठ मापदण्ड बनाएगी कि किस तरह के मामले सदस्यों की पीठ देखेगी और कौन से मामलों का निर्णय मुख्य सतर्कता अधिकारी या सतर्कता अधिकारियों के स्तर पर होगा. ये मापदण्ड सरकार को हुए घाटे और/या जनता पर उसके असर और/या दोषी की स्थिति पर आधारित हो सकते हैं.
लोकपाल स्वत: जांच-पड़ताल करने का निर्णय ले सकता है.
(6)   कैबिनेट के किसी भी सदस्य के खिलाफ लोकपाल की पूरी पीठ जांच-पड़ताल या अभियोग शुरू कर सकती है.
(7)   इस अधिनियम के प्रावधान के अन्तर्गत कुछ मुद्दों पर लोकपाल की पूरी पीठ निर्णय लेगी. उस पीठ में कम से कम सात सदस्य होंगे.
(8)   लोकपाल की बैठक के कार्य विवरण और दस्तावेज सार्वजनिक होंगे. 
15. लोकपाल के पास शिकायत दर्ज कराना:
(1)   इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन, कोई भी व्यक्ति लोकपाल को इस अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करा सकता हैं.
बशर्ते इस शिकायत के मामले में, यदि व्यक्ति मर चुका है या किसी भी कारण से वह खुद यह कार्य करने में असमर्थ है, तो यह उस व्यक्ति के वैधानिक प्रतिनिधि या उसके द्वारा लिखित रूप से अधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा शिकायत दर्ज कराई जा सकती है और यदि शिकायत हो चुकी है तो लिखित तौर अधिकृत प्रतिनिधि के द्वारा शिकायत को जारी रखा जा सकता हैं.
यह भी कि नागरिक अपनी शिकायत देश में कहीं भी लोकपाल के किसी भी कार्यालय में दर्ज करा सकते हैं. लोकपाल कार्यालय का यह कर्र्तव्य होगा कि वह अपने तहत किसी युक्तियुक्त  लोकपाल अधिकारी को शिकायत पत्र हस्तान्तरित कर दे. 
(2)   शिकायत किसी सादे कागज पर भी लिखकर दर्ज कराई जा सकती है परन्तु उसमें लोकपाल द्वारा निर्धारित सभी विवरण शामिल होने चाहिए. 
(2क) अपनी वार्षिक रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करने के बाद, भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक ऐसे सभी मामलों को लोकपाल को अग्रेशित करेंगे, जो इस अधिनियम के अन्तर्गत आरोप निर्धारित करते हैं और लोकपाल उन पर इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप ही कार्य करेगा.
(3)   शिकायत प्राप्त होने पर, लोकपाल यह फैसला करेगा कि यह आरोप है या शिकायत या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले की सुरक्षा के लिए अनुरोध है या दोनों का मिश्रण है या इससे कुछ अधिक है.
(4)   लोकपाल को हर शिकायत अनिवार्य तौर पर निपटानी होगी. 
परन्तु शिकायतकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए बिना किसी शिकायत को बन्द नहीं किया जाएगा. 
16. लोकपाल द्वारा जिन मामलों की जांच की जा सकती है- इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन लोकपाल किसी ऐसे कार्य की जांच कर सकता है जो किसी लोकसेवक के द्वारा किया गया हो, अथवा उसकी सामान्य या विशिष्ट स्वीकृति से किया गया हो, जिसकी शिकायत की रिपोर्ट की गई हो अथवा ऐसे कार्य के बारे में कोई आरोप लगाया गया हो. 
परन्तु लोकपाल इस तरह के कार्य की स्वत: अथवा सरकार द्धारा कहे जाने पर भी जांच कर सकता है, यदि उसकी लिखित राय में ऐसे काम में कोई शिकायत या आरोप हो या होने की सम्भावना हो. 
17. वे मामले जो जांच के दायरे से बाहर होंगे 
(1)   लोकपाल, अधिनियम के अन्तर्गत निम्न कार्रवाई के सम्बन्ध में शिकायत के मामले में, कोई जांछ नहीं करेगा - 
क.     यदि शिकायतकर्ता के पास  किसी अन्य कानून द्वारा प्रदत्त किसी प्राधिकरण के सामने अपील, पुनरीक्षण, समीक्षा या किसी अन्य माध्यम से कोई निवारण है, या था और उसने उसका उपयोग नहीं किया है. 
ख.     न्यायिक व अर्द्ध न्यायिक निकायों द्वारा लिए गए निर्णय जब तक कि शिकायतकर्ता दुर्भावनापूर्ण होने का आरोप न लगाए.
ग.      यदि पूरी शिकायत तात्विक रूप में किसी न्यायालय या सक्षम न्याय अधिकार क्षेत्र की अर्ध- न्याययिक संस्था के समक्ष लम्बित है
घ.      ऐसी कोई शिकायत जहां इसे निपटान करने में अत्यधिक एवं अबोध्य विलम्ब हो.
(2)   इस अधिनियम में ऐसा कुछ भी नहीं है कि लोकपाल संसद के किसी सदन के पीठासीन अधिकारी की स्वीकृति लेने के बाद ही किसी कार्रवाई की जांच करेगा.
(3)   इस अनुच्छेद की कोई बात लोकपाल को कदाचार या भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले की सुरक्षा के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से नहीं रोक सकती है.
18. शिकायत और जांच से सम्बन्धित प्रावधान-
(1)           क. लोकपाल, किसी शिकायत, आरोप के रूप में प्राप्त किसी शिकायत अथवा दोनों, या स्वत: संज्ञान से उठाए गए किसी मामले में, दस्तावेज़ों को देखते हुए, जांच या पूछताछ की प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय ले सकता है, या जांच और पूछताछ की प्रक्रिया की सुनवाई के पहले प्रारम्भिक जांच का निर्णय ले सकता है या किसी दूसरे व्यक्ति को प्रारम्भिक जांच करने का निर्देश दे सकता है ताकि किसी जांच के लिए उचित आधार है या नहीं यह तय किया जा सकें. प्राथमिक जांच के परिणाम आते ही इसकी जानकारी, और यदि मामले को बन्द करने का निर्णय लिया जाता है तो जांच के दौरान एकत्र की गई समस्त सामग्री शिकायकर्ता को उपलब्ध कराई जाएगी. 
             साथ ही यह भी कि यदि, किसी मामले को बन्द किया जाता है तो उससे सम्बन्धित सभी दस्तावेज सार्वजिनक माने जाएंगे. हर महीने, बन्द किए गए ऐसे मामलों की सूची, मामले को बन्द किए जाने के कारण सहित,  वेबसाइट पर डाली जाएगी. इस तरह बन्द किए गए मामलों से सम्बन्धित सारी सामग्री सूचना के अधिकार के कानून के तहत, जानकारी मांगने वाले किसी भी व्यक्ति को, उपलब्ध कराई जाएगी
             परन्तु साथ ही यह भी कि किसी भी शिकायत या आरोप को, शिकायतकर्ता के उद्देश्य अथवा प्रेरणा के आधार पर खारिज़ नहीं किया जा सकेगा. 
साथ ही यह भी कि, लोकपाल के समक्ष की गई सभी सुनवाइयों की वीडियो रिकार्डिंग होगी और किसी भी व्यक्ति को, प्रतियां बनाने के मूल्य अदा करने पर, उपलब्ध कराई जाएगी.
क.     किसी शिकायत की प्रारम्भिक जांच के लिए प्रक्रिया लोकपाल द्वारा मामले की परिस्थियों के आधार पर तय की जाएगी और यदि आवश्यक प्रतीत होता है तो लोकपाल सम्बन्धित लोक सेवक से टिप्पणी भी आमन्त्रित कर सकता है. 
परन्तु यह भी कि, प्राथमिक जांच पूरी करने और मुकदमे को बन्द करने या जांच के लिए आगे बढ़ाने का निर्णय शिकायत प्राओत करने के एक माह के अन्दर और निश्चित तौर पर तीन माह के अन्दर ले लिया जाएगा. यदि एक महीने में जांच पूरी नहीं हो पाती वहां जांच पूरी होने पर विलम्ब का कारण लिखित तौर पर दर्ज कर के सार्वजनिक किया जाएगा.
ख.     इस अधिनियम के तहत कोई भी शिकायत गुमनाम स्वीकार नहीं की जाएगी. शिकायतकर्ता  को लोकपाल के पास अपनी पहचान ज़ाहिर करनी होगी. तथापि यदि शिकायकर्ता चाहता है तो लोकपाल द्वारा उसकी पहचान गोपनीय रखी जाएगी. 
(2)  जहां लोकपाल सीधे सीधे या प्रारम्भिक जांच के बाद इस अधिनियम के अन्तर्गत जांच प्रस्तावित करता है, तो- 
क.     जरुरी समझने पर जांच से सम्बन्धित दस्तावेजों को सुरक्षित स्थान पर रखने का निर्देश दे सकता है. 
ख.     जांच के उचित चरण पर या खत्म होने पर, जांच रिपोर्ट की प्रति, उसके निष्कर्ष एवं निष्कर्ष से सम्बन्धित आधार सामिग्री की प्रति सम्बन्धित लोक सेवक और शिकायतकर्ता को अग्रेशित की जाएगी.  
ग.      सम्बन्धित लोक सेवक और शिकायतकर्ता को टिप्पणी और सुनवाई का मौका दिया जाएगा.  
साथ ही यह भी कि अति विशिष्ट परिस्थितियों को छोड़ कर ऐसी सुनवाई सार्वजनिक रूप से की जाएगी, और उसे लिखित तौर पर रिकार्ड किया जाएगा, जहां यह सार्वजनिक हित में नहीं है, न्याय के हित के लिए इसे कैमरे में रिकार्ड कर सार्वजनिक किया जाएगा.
(3)  इस अधिनियम के अन्तर्गत किसी कार्रवाई के सम्बन्ध में लोक सेवक के खिलाफ जांच करना उस कार्रवाई को, या जांच के अधीन किसी मामले के सम्बन्ध में आगे कोई कार्रवाई करने के लिए किसी अन्य लोक सेवक की शक्ति को प्रभावित नहीं करेगा. 
(4)   यदि इस अधिनियम के तहत प्रारम्भिक जांच के दौरान, लोकपाल प्रथम दृष्टया सन्तुष्ट है कि आरोपों या शिकायतों के परिप्रेक्ष्य में पूरी या आंशिक तौर पर किसी भी तरह की कार्रवाई की सम्भावना है तो वह एक अन्तरिम आदेश के माध्यम से, लोक प्राधिकरण को निर्णय या कार्रवाई के क्रियान्वयन या अमलीकरण पर रोक लगाने की सिफारिश कर सकता है, या ऐसे नियम व शर्तों पर वह बाध्यकारी या निवारक कार्रवाई कर सकता है, जो और ज्यादा नुकसान से रोकने के वह अपने आदेश में उल्लेखित करे. लोक प्राधिकरण इस उप अनुच्छेद के अन्तर्गत आदेश प्राप्त करने के 15 दिन के अन्दर लोकपाल की सिफारिशों पर या तो अमल करेगा या उन्हें नामंजुर करेगा. लोकपाल यदि आवश्यक समझे तो, लोक प्राधिकरण को उपयुक्त निर्देश देने की मांग करते हुए सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है. 
(5)   लोकपाल, यदि जांच के दौरान सन्तुष्ट होता है कि किसी मामले में अभियोग शुरू होने की सम्भावना है, या जांच की समाप्ति पर अभिय्ग शुरू करते समय, मामले में सभी आरोपियों की चल अचल सम्पित्ति की सूची बनाएगा और उसे अधिसूचित करेगा. अधिसूचना के पश्चात इस सम्पत्ति के हस्तान्तरण की अनुमति नहीं होगी. अन्तिम सजा की स्थिति में अदालत, अन्य उपायों के अलावा, इस अधिनियम की धारा 19 के अन्तर्गत, इस सम्पत्ति से भ्रष्टाचार के चलते हुई क्षति की वसूली कर सकता है. 
(6)   यदि शिकायतों की जांच और पूछताछ के दौरान, लोकपाल को लगता है कि सरकारी सेवक के पद पर बने रहना जांच या पूछताछ को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित कर सकता है या वह सरकारी सेवक सबूतों को नष्ट या छेड़छाड़ या गवाहों को प्रभावित कर सकता है, तो लोकपाल उस सरकारी सेवक के स्थानान्तरण या निलम्बन की उपयुक्त सिफारिश जारी कर सकता है. लोक प्राधिकरण लोकपाल द्वारा की गई सिफारिश के मिलने के 15 दिन के भीतर इसे उप धारा के अन्तर्गत इसे मान भी सकता है या मना कर सकता है. यदि लोकपाल इसे महत्वपूर्ण मानता है तो वह सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है और लोक प्राधिकरण के लिए उपयुक्त निर्देश की मांग कर सकता है.
(7)   लोकपाल, इस अधिनियम के अन्तर्गत पूछताछ अथवा जांच के किसी भी चरण में, अन्तरिम आदेश के ज़रिए, सक्षम प्राधिकारों को आवश्यक कार्रवाई करने, पूछताछ या जांच रोकने का निर्देश दे सकता है-
क.     लोक सेवक के प्रशासनिक कार्य से सार्वजनिक राजस्व अपव्यय को रोकने या सार्वजनिक सम्पत्ति की क्षति के लिए
ख.     सरकारी सेवक के कार्यों में कदाचार को रोकने के लिए 
ग.      सरकारी सेवक द्वारा भ्रष्ट तरीके से अर्जित सम्पत्ति को छिपाने से रोकने के लिए,
इस उप अनुच्छेद के अन्तर्गत लोक प्राधिकरण आदेश प्राप्त करने के 15 दिन के भीतर इस पर अमल करेगा अन्यथा नामंजूर करेगा. यदि लोकपाल इसे महत्वपूर्ण समझे तो वह सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है और लोक प्राधिकरण के लिए उपयुक्त निर्देश की मांग कर सकता है.
(8)   जहां, शिकायत पर जांच के बाद, लोकपाल यह पाता है कि, मन्त्रियों, संसद सदस्यों एवं न्यायधीशों के अतिरिक्त, किसी लोक सेवक के खिलाफ शिकायत में शामिल आरोप की पुष्टि होती है और सम्बन्धित लोक सेवक को अपने पद पर कायम नहीं रहना चाहिए तो वह इस हेतु आदेश जारी कर सकता है, यदि लोकसेवक मन्त्री है तो लोकपाल राष्ट्रपति को ऐसी शिकायत करेगा. राष्ट्रपति द्वारा सिफारिश प्राओत करने के एक माह के अन्दर, उसे स्वीकार करने या नामंजूर करने का निर्णय लिया जाएगा.
परन्तु यह भी कि इस अनुच्छेद के प्रावधान प्रधानमन्त्री पर लागू नहीं होंगे.
(9)   लोकपाल के सभी रिकार्ड और सूचनाएं सूचना का अधिकार कानून के तहत सार्वजनिक किए जाएंगे. और यहां तक कि जांच व पूछताछ की स्थिति भी, जब तक कि उस सूचना के जारी करने से किसी जांच व पूछताछ की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ता हो, उपलब्ध कराए जाएंगे.
भ्रष्टचार के चलते सरकार को होने वाले नुकसान की भरपाई और दण्ड
19. सरकार को होने वाले नुकसान की वसूली: भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 की धारा 19 के तहत जब कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तब परीक्षण न्यायालय, सरकार को हुए नुकसान और दोषी द्वारा भ्रष्टाचार के माध्यम से अर्जित लाभ की गणना कर, इस तरह की कुल राशि को विभिन्न दोषियों के ऊपर आरोपित किया जाएगा और उनकी सम्पत्ति के ज़रिए वसूला जाएगा. 
19क. अपराध के लिए सज़ा भ्रष्टाचार निरोधक कानून की उपधारा 2 (4) और उपधारा 28ए के अध्याय iii में  विर्णत अपराध के लिए कम से कम एक वर्ष के सश्रम कारावास की सज़ा होगी और इसे उम्रकैद के तक भी बढ़ाया जा सकता है. 
दोषी व्यक्ति के सरकार में उच्च पद पर आसीन होने की स्थिति में यह सज़ा और भी कठोर हो सकती है. 
इसके अतिरिक्त, बशर्तें  कि, अपराध इस अधिनियम की उपधारा 2(4) के तहत विर्णत है और लाभार्थी एक व्यावसायिक इकाई है तो, इस अधिनियम में वर्णित एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत अन्य सजा के अलावा जनता को हुए नुकसान का की पांच गुना राशि दोषी से जुर्माने के रूप में वसूली जाएगी,  अगर दोषी की सम्पत्ति अपर्याप्त है तो यह वसूली व्यावसायिक ईकाई और उसके निदेशकों की व्यक्तिगत सम्पत्ति से वसूली जा सकती है.
उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों के खिलाफ शिकायतों का निपटान
19ख. हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट के जजों के खिलाफ शिकायतों की प्राप्ति व निपटाना:
(1)   हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट के जजों के खिलाफ किसी भी शिकायत को केवल लोकपाल अध्यक्ष ही देखे.
(2)   इस तरह की प्रत्येक शिकायत की प्रारम्भिक जांच होगी, जो प्रथम दृष्टया यह आकलन करेगी कि क्या भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत पर्याप्त सबूत हैं. यह जांच लोकपाल के किसी एक सदस्य द्वारा की जाएगी, जो लोकपाल की पूर्ण पीठ के समक्ष इसे प्रस्तुत करेगा. परन्तु यह पूर्ण पीठ, विधिक पृष्टभूमि के कम से कम तीन कानूनी सदस्यों की होगी.
(3)   कोई भी मामला विधिक पृष्ठभूमि के सदस्यों के बहुमत वाली पूर्ण पीठ के अनुमोदन के बगैर पंजीकृत नहीं किया जाएगा.
(4)   इस तरह के मामलों की जांच एक विशेष टीम द्वारा होगी, जिसका नेतृत्व कम से कम पुलिस अधीक्षक स्तर का अधिकारी करेगा.
(5)   अभियोजन आरम्भ करने अथवा न करने का निर्णय भी, लोकपाल की विधिक पृष्ठभूमि के सदस्यों के बहुमत वाली पूर्ण पीठ के द्वारा ही लिया जाएगा.
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों का संरक्षण:
20. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों का संरक्षण:
(1)   भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई व्यक्ति, यदि उसका व्यावसायिक या शारीरिक उत्पीड़न हो रहा हो या ऐसी धमकी दी गई हो तो   लोकपाल से सुरक्षा मांग सकता है,
(2)   इस तरह की कोई शिकायत मिलने पर लोकपाल निम्न कदम उठाएगा: 
क.     व्यावसायिक उत्पीड़न: उपयुक्त जांच के बाद अगर लोकपाल महसूस करता है कि इस अधिनियम के तहत आरोप लगाने के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज वाले को वास्तव में खतरा है तो वह यथाशीघ्र , लेकिन शिकायत मिलने के एक माह से अधिक नहीं, सक्षम अधिकारी को लोकपाल के निर्देशानुसार आवश्यक कदम उठाने का आदेश देगा. 
ख.     अगर भष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठाने वाला शिकायत करता है कि इस अधिनियम के तहत आरोप लगाने के बाद उसका व्यावसायिक उत्पीड़न हुआ है अथवा उसे पेशेगत रूप से नुकसान पहुंचाया गया है और जांच के बाद लोकपाल की यह राय बनती है कि सूचनादाता को वास्तव में नुकसान पहुंचाया गया है तो यथाशीघ्र, लेकिन शिकायत मिलने के एक माह से अधिक नहीं, युक्तियुक्त अधिकारी को लोकपाल के निर्देशानुसार आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश देगा. 
प्रावधान (क) के तहत लोकपाल धमकी देने वाले या नुकसान पहुंचाने वाले सरकारी अधिकारी के विरुद्ध सुसंगत नियमों के तहत उचित दण्ड का आदेश निर्गत कर सकता है लेकिन प्रावधान (ख) के तहत निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
परन्तु प्रभावित सरकारी सेवक को अपना पक्ष रखने का एक अवसर उपलब्ध कराए बिना दंड़ का निर्धारण नहीं किया जा सकेगा. 
ग.      शारीरिक नुकसान की धमकी: लोकपाल, युक्तियुक्त जांच कराएगा और अगर उसे लगे कि वास्तव में धमकी दी गई है और यह धमकी इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करने के वजह से दी गई है, तो किसी भी अन्य कानून के बावजूद लोकपाल अधिकतम एक सप्ताह के अन्दर उपयुक्त अधिकारी के साथ पुलिस को उक्त व्यक्ति को उचित सुरक्षा उपलब्ध कराने के साथ, धमकी देने वालों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज कर आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश देगा.      
अगर धमकी गम्भीर एवं सिन्नकट है तो लोकपाल तत्काल कार्रवाई करते हुए, कुछ घण्टों के अन्दर उक्त व्यक्ति को शारीरिक हमले से बचाने का उपाय करेगा. अगर शिकायतकर्ता अध्यक्ष या किसी सदस्य से मिलना चाहता है तो वह उनसे फोन या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात करने या व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए अधिकृत होगा.   
ग.      यदि कोई व्यक्ति शिकायत करता है कि इस अधिनियम के अन्तर्गत आरोप लगाने की वजह से उस पर शारीरिक हमला हुआ है और लोकपाल जांच के बाद इस बात से आश्वस्त होता है कि उस व्यक्ति पर इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करने की वजह से हमला हुआ है, तो किसी भी अन्य कानून के बावजूद, लोकपाल ,यथाशीघ्र लेकिन अधिक से अधिक 24 घण्टे के अन्दर सम्बन्धित अधिकारियों को - उक्त व्यक्ति को उचित सुरक्षा उपलब्ध कराने, हमलावरों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज कराने के साथ साथ यह भी सुनिश्चित करने कि उस व्यक्ति के साथ दोबारा इस तरह की घटना न होके आदेश जारी करेगा. अगर शिकायतकर्ता अध्यक्ष या किसी सदस्य से मिलना चाहता है तो वह उनसे फोन या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात करने या व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए अधिकृत होगा.
(घ क) अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला कोई व्यक्ति आरोप लगाता है कि इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार अधिनियम के इस्तेमाल की वजह से उसके खिलाफ पुलिस या किसी प्राधिकारी ने मामला दर्ज कराया है या मामला दर्ज कराने का उपक्रम किया जा रहा है तो लोकपाल जांच के आधार पर उपयुक्त अधिकारियों को ऐसा मामला वापस लेने का आदेश निर्गत कर सकता है.
(घ ख) शारीरिक नुकसान की धमकी के मामले में या कोई ऐसा व्यक्ति जिस पर हमला हुआ है, देश में कहीं भी लोकपाल के कार्यालय में शिकायत कर सकता है और लोकपाल कार्यालय का यह कर्र्तव्य होगा कि वह उस शिकायत को तत्काल लोकपाल के उपयुक्त अधिकारी तक पहुंचा दे.  
(घ ग) लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले को सुरक्षा प्रदान करने का उत्तरदायित्व अपने अधीन किसी सतर्कता अधिकारी को सौंप सकता है और इस मामले में उस अधिकारी को यह अधिकार होगा कि वह उपयुक्त प्राधिकारी जिसमें पुलिस भी शामिल होगी, को उक्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले की सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दे सकता है.    
(घ घ) अगर लोकपाल के पास शिकायत के बाद किसी व्यक्ति पर हमला किया जाता है तो लोकपाल के सम्बन्धित अधिकारी को कर्र्तव्य का निर्वहन न कर पाने या मिलीभगत या दोनों का दोषी ठहराया जाएगा, जब तक वह इसकी पुष्टि नहीं कर देता कि उसने अपनी ओर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.    
घ.      अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला व्यक्ति भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दण्डनीय किसी कृत्या का आरोप लगाता है तो लोकपाल प्रावधान (ग) के मामले के तहत आरोपों की जांच के लिए एक विशेष दल का गठन कर सकता है जो प्राथमिकता के आधार पर एक महीने के भीतर मामले की जांच पूरा करेगा और प्रावधान (घ) के मामलों के तहत निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
ङ.      अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई ऐसा आरोप लगाता है जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से अलग किसी अन्य कानून के तहत दण्डनीय है, तो प्रावधान (ग) के अधीन आने वाले मामले में लोकपाल उस ऐजेंसी, जिसके पास उस कानून को लागू करने का अधिकार है, को सूचनादाता के अरोपों की जांच के लिए विशेष दल बनाने और प्राथमिकता के आधार पर लोकपाल द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दे सकता है और प्रावधान (घ) के अधीन आने वाले मामले में लोकपाल निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
च.      उपनियम (छ) के अधीन आने वाले मामलों में लोकपाल को उपयुक्त ऐजेंसी को इस तरह की जांच की निगरानी करने और अगर जरूरी हुआ तो लोकपाल के निर्देश के अनुरूप ऐजेंसी को खुद जांच करने का निर्देश जारी करने का अधिकार होगा. 
छ.     भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला, जिसे शारीरिक नुकसान पहुंचाने की धमकी दी गई है या उसे वास्तविक रूप से नुकसान पहुंचाया गया है, सीधे लोकपाल के अध्यक्ष से मिल सकता है और अध्यक्ष 24 घण्टे के भीतर उससे मिलेंगे और अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक उचित कर्रवाई करेंगे.
(3) अगर कोई शिकायतकर्ता अनुरोध करता है कि उसकी पहचान गुप्त रखी जाए तो लोकपाल ऐसा सुनिश्चित करेगा. लोकपाल इस बारे में विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित करेगा कि इस तरह की शिकायतों को कैसे आगे बढ़ाया जाएगा. 
(4) लोकपाल जुल्म की पुनरावृत्ति रोकने के लिए लोक प्राधिकारियों को नीतियों और प्रक्रिया में आवश्यक परिवर्तन का आदेश निर्गत करेगा.
(5) लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों से शिकायत की प्राप्ति और निपटान के लिए उपयुक्त नियम बनाएगा.
JAN LOKPAL BILL PART- TWO